Saturday, February 9, 2013

आप और तिल सन् 2013

शरीर पर तिल होने का फल
माथे पर - बलवान हो
ठुड्डी पर - स्त्री से प्रेम न रहे दोनों बांहों के बीच--यात्रा होती रहे
दाहिनी आंख - पर स्त्री से प्रेम
बायीं आंख पर - स्त्री से कलह रहे
दाहिनी गाल पर - धनवान हो
बायीं गाल पर - खर्च बढता जाए
होंठ पर - विषय-वासना में रत रहे
कान पर - अल्पायु हो
गर्दन पर - आराम मिले
दाहिनी भुजा पर - मान-प्रतिष्ठा मिले
बायीं भुजा पर - झगडालू होना
नाक पर - यात्रा होती रहे
दाहिनी छाती पर - स्त्री से प्रेम रहे
बायीं छाती पर - स्त्री से झगडा होना
कमर में - आयु परेशानी से गुजरे
दोनों छाती के बीच - जीवन सुखी रहे
पेट पर - उत्तम भोजन का इच्छुक
पीठ पर - प्राय: यात्रा में रहा करे
दाहिने हथेली पर - बलवान हो
बायीं हथेली पर - खूब खर्च करे
दाहिने हाथ की पीठ पर - धनवान हो
बाएं हाथ की पीठ पर - कम खर्च करे
बाएं हाथ की पीठ पर - कम खर्च करे
दाहिने पैर में - बुद्धिमान हो
बाएं पैर में - खर्च अधिक हो

सफलता का पैमाना


Criteria for Success
           सफलता का पैमाना

सफल मनुष्य हर बार गिरकर उठते रहते हैं। वे कर्म-पथ पर अग्रसर ही रहते हैं। विफलता उनको एक नया पाठ पढ़ाकर चुनौती के साथ आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है। थोड़ा ऊंचा सुनने वाले और अध्ययन के योग्य न होने के कारण स्कूल से निष्कासित कर दिए जाने वाले थॉमस एडिसन ने अनेक बार विफल रहने के बाद विद्युत-बल्ब का आविष्कार किया था। 40 वर्ष की अवस्था में हेनरी फोर्ड ने दिवालिया हो जाने के बाद भी पहली बार कार बनाई थी। क्या वे सफल व्यक्ति नहीं थे? अब्राहम लिंकन के जीवन में सिर्फ विफलताएं भरी पड़ी थीं, परंतु अंतत: 52 वर्ष की अवस्था में वह अमेरिका के राष्ट्रपति निर्वाचित किए गए थे। जिंदगी में विफलता तो मिलेगी ही। विफलता सफलता की जननी है। आज की भाषा में यों कहें कि यह एक 'ड्राइविंग' फोर्स बनती है, जो सफलता की गाड़ी चलाने में सहायता करती है। हर विफलता के बाद हमें स्वयं से प्रश्न करने होंगे- इस घटना में हमने क्या पाया और क्या खोया? हर किसी के जीवन में सफलता मिलने और न मिलने के क्षण आते हैं।
जहां सफलता ही किसी को प्रसन्नता प्रदान करती है वहीं असफलता अप्रसन्नता और अवसाद का कारण बनती है। कुछ लोग स्वयं को दुनिया का सबसे हतभाग व्यक्ति मानकर चिंताग्रस्त हो जाते हैं। धीरे-धीरे, चिंता की यह प्रवृति उनके व्यक्तित्व पर इस तरह प्रभावी हो जाती है कि उनके जीवन का प्रत्येक पक्ष 'कृष्णपक्ष' बनकर रह जाता है। रही बात भाग्य की तो यह जान लीजिए कि तथाकथित भाग्य आपके कर्म पर निर्भर करता है। सफलता भाग्य से नहीं प्राप्त होती, अपितु विश्वास के साथ की गई समुचित कार्ययोजना की तैयारी, इच्छाशक्ति और प्रतिबद्घता के बल पर अर्जित की जाती है। आपको चिंताग्रस्त नहीं होना है। आपको इस सत्य से साक्षात् करना होगा कि 'भाग्य' का अस्तित्व नहीं होता, मनुष्य अपनी अयोग्यता और शक्ति की हीनता पर आवरण डालने का उपक्रम करने के लिए तथाकथित भाग्य को बैसाखी के रूप में 'इस्तेमाल' करता है। जब तक नकारात्मकता के स्थान पर सकारात्मकता की स्थापना नहीं होगी तब तक सफलता हमसे दूर है।
[डॉ. पृथ्वीनाथ पांडेय]