Sunday, July 14, 2013

पूजा के बाद क्यों जरूरी है आरती ?


घर हो या मंदिर, भगवान की पूजा के बाद घड़ी, घंटा और शंख ध्वनि के साथ आरती की जाती है। बिना आरती के कोई भी पूजा अपूर्ण मानी जाती है। इसलिए पूजा शुरू करने से पहले लोग आरती की थाल सजाकर बैठते हैं। पूजा में आरती का इतना महत्व क्यों हैं इसका उत्तर स्कंद पुराण में मिलता है। इस पुराण में कहा गया है कि अगर कोई व्यक्ति मंत्र नहीं जानता, पूजा की विधि नहीं जानता लेकिन आरती कर लेता है तो भगवान उसकी पूजा को पूर्ण रूप से स्वीकार कर लेते हैं।


आरती का धार्मिक महत्व होने के साथ ही वैज्ञानिक महत्व भी है। याद कीजिए आरती की थाल में कौन कौन सी वस्तुओं का प्रयोग किया जाता है। आपके जेहन में रुई, घी, कपूर, फूल, चंदन जरूर आ गया होगा। रुई शुद्घ कपास होता है इसमें किसी प्रकार की मिलावट नहीं होती है। इसी प्रकार घी भी दूध का मूल तत्व होता है। कपूर और चंदन भी शुद्घ और सात्विक पदार्थ है।



जब रुई के साथ घी और कपूर की बाती जलाई जाती है तो एक अद्भुत सुगंध वातावरण में फैल जाती है। इससे आस-पास के वातावरण में मौजूद नकारत्मक उर्जा भाग जाती है और सकारात्मक उर्जा का संचार होने लगता है।



आरती में बजने वाले शंख और घड़ी-घंटी के स्वर के साथ जिस किसी देवता को ध्यान करके गायन किया जाता है उसके प्रति मन केन्द्रित होता है जिससे मन में चल रहे द्वंद का अंत होता है। हमारे शरीर में सोई आत्मा जागृत होती है जिससे मन और शरीर उर्जावान हो उठता है। और महसूस होता है कि ईश्वर की कृपा मिल रही है। 
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शरीर पर गिरे छिपकली, तो स्नान करना क्यों है जरूरी ?


घर की दीवारों पर आपने छिपकली को जरूर देखा होगा। कभी कभी यह अचानक दीवार से गिर भी जाती है। संयोगवश अगर यह आपके शरीर पर गिर जाए तो कई तरह की आशंकाएं मन में उठने लगती है। बड़े-बुजुर्ग कहते हैं कि छिपकली अगर शरीर पर गिर जाए तो तुरंत स्नान कर लेना चाहिए अन्यथा अनहोनी घटनाओं का सामना करना पड़ता है।

बड़े-बुजुर्गों का ऐसा कहना उचित भी है क्योंकि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी यह साबित होता है कि छिपकली का शरीर पर गिरना खतरनाक है। इससे रोग की संभावना रहती है। इसका कारण यह है कि छि‍पकली 'कार्डेटा समूह' के 'फाइलम' वर्ग की जीव है। इस वर्ग के कुछ जीव अपने शरीर में बने जहर (यूरि‍क एसि‍ड) को अपनी चमड़ी पर जमा कर लेते हैं। इस वजह से यह सुरक्षि‍त भी रहते हैं।

जब कभी छि‍पकली किसी के शरीर पर गि‍रती है तो अपने शरीर का जहर उसकी त्‍वचा पर छोड़ देती है। यह जहर बाद में रोम छि‍द्रों से शरीर के भीतर जाकर घाव का रूप ले लेता है। इसीलि‍ए कहा जाता है कि शरीर पर छि‍पकली ‍गिरे तो स्नान कर लेना चाहि‍ए। इस संदर्भ में कई जगह पूजा का भी विधान है।

पूजा में तुलसी के पत्ते का होना अनि‍वार्य है। इसका कारण ये है कि तुलसी में कई औषधीय गुण पाए जाते हैं। प्रसाद के तौर पर तुलसी ग्रहण करने पर घाव होने की आशंका काफी कम हो जाती है।

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मांगलिक कार्यों में आम के पत्तों का प्रयोग क्यों?


आम का मौसम अब अपने अंतिम पड़ाव पर है। कुछ दिनों बाद हो सकता है आप बाजार में आम देखें भी नहीं लेकिन आम के पत्ते आपको साल भर बाजार में फूल माला बेचने वालों के पास दिख जाएंगे।

दरअसल आम के पत्ते मांगलिक कार्य के दौरान बड़े ही शुभ माने जाते हैं। इसके बिना कोई भी शुभ कार्य पूरा नहीं होता है चाहे गृह प्रवेश हो, विवाह अथवा पूजन। गृह प्रवेश एवं हवन के मौके पर तो आम के पत्तों का तोरण भी लगाया जाता है।

इसका धार्मिक कारण होने के साथ ही वैज्ञानिक आधार भी है। धार्मिक मान्यता के अनुसार आम हनुमान जी का प्रिय फल है। इसलिए जहां भी आम और आम का पत्ता होता है वहां हनुमान जी की विशेष कृपा बनी रहती है। इसलिए बुरी शक्तियां एवं नकारात्मक ऊर्जा शुभ कार्य में बाधा नहीं डाल पाती हैं। आम के पत्तों का शुभ कार्य में प्रयोग का कारण यह भी है कि मनुष्य का प्रकृति से साथ संबंध बना रहे।

यह घटना नहीं होती तो आम विदेशों से आता

दूसरी तरफ वैज्ञानिक दृष्टि के अनुसार आम का पत्ता गुणों की खान है। इसके पत्तों में डायबिटीज को दूर करने की क्षमता है। कैंसर और पाचन से संबंधित रोग में भी आम का पत्ता गुणकारी होता है। यानी स्वास्थ्य की दृष्टि से आम का पत्ता लाभदायक होता है।

आमतौर जब आप किसी उत्सव अथवा पूजा-पाठ का आयोजन करते हैं तब चिंता और तनाव बढ़ जाता है कि काम सफलतापूर्वक पूरा हो पाएगा या नहीं। आम के पत्तों में मौजूद विभिन्न तत्व चिंता और तनाव को दूर करने में सहायक होते हैं। इसलिए भी मांगलिक कार्यों में आम के पत्तों का प्रयोग किया जाता है।
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